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म दूर भएर के भो / अम्बर गुरुङ

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म दूर भएर के भो, अभिषाप छाएर के भो
यति रोए जिन्दगीमा, कि फेरि रोएर के भो

जति भावना छन सबै, रित्ता छन यति रित्ता
ती जागरणका सामुन्ने, उत्साह छन रित्ता-रित्ता
तिम्रो साथ छुटेर के भो, नयाँ हात पाएर के भो
यति खोज्छु सम्झनलाई, कि बिर्सिसकेर के भो

आफ्नै यी धडकनहरू, भिन्न छन यति भिन्न
बदलेछु म स्वयं नै, लाचार छु स्वयं चिन्न
म उदास भएर के भो, म खुशी भएर के भो
यति विरान जिन्दगी छ, कि विरानी आए के भो