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मंज़िलें आईं तो रस्ते खो गए / इफ़्फ़त ज़रीन

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मंज़िलें आईं तो रस्ते खो गए
आबगीने थे के पत्थर हो गए

बे-गुनाही ज़ुल्मतों में क़ैद थी
दाग़ फिर किस के समंदर धो गए

उम्र भर काटेंगे फ़सलें ख़ून की
ज़ख़्म दिल में बीज ऐसा बो गए

देख कर इंसान की बे-चारगी
शाम से पहले परिंदे सो गए

अन-गिनत यादें मेरे हम-राह थीं
हम ही 'ज़र्रीं' दरमियाँ में खो गए