भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मइया जइबउ हमहुँ इसकुलवा / सिलसिला / रणजीत दुधु
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 30 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत दुधु |अनुवादक= |संग्रह=सिलस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पढ़े लगी लिखे लगी सीखे लगी
मइया जइबउ हमहुँ इसकुलवा-2।
ढेर दिन गड़लिअउ बकरिया के खुटवा
ला दे अब हमरा सिलउट-पिलसुटवा
बाबुजी के चिट्ठिया लिखे लगी
मइया जइबउ हमहुँ इसकुलवा।
गुरूजी हमरा ककहरा सिखइथिन
पढ़ा-लिखा के दुनिया चिन्हइथिन
सुख से ई जिनगी जीये लगी
मइया जइबउ हमहुँ इसकुलवा।
जात-पात के भेद मिटे हे विद्या मंदिर जाके
अदमी जीए ला सिक्खे हे शिक्षा घर में जा के
देशवा के शान पे मिटे लगी-2
मइया जइबउ हमहुँ इसकुलवा।