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मजदूर / एस. मनोज

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हम मजदूर हम मजदूर
कारपोरेट के चकाचौंध में
सारी खुशियां हमसे दूर
हम मजदूर हुए मजबूर

काम के घंटे आठ हुए थे
सब मजूर जब साथ लड़े थे
शिकागो की रणभूमि में
पायी थी खुशियां भरपूर
हम मजदूर हम मजदूर

समय का पहिया आगे आया
पूंजीवाद ने जाल बिछाया
होरी धनियाँ सब को ठग कर
शासक हैं सब मद में चूर
हम मजदूर हुए मजबूर

ठेका मनरेगा में बैठते
आपस में ही नित्य हैं कटते
हक की बात उठाते जब हम
होती सत्ता अधिक ही क्रूर
हम मजदूर हुए मजबूर

कृषक श्रमिक सब मिलकर आओ
हक की बात सड़क पर लाओ
सारी ताकत एक बने तो
शोषण हो काफूर
हम मजदूर नहीं मजबूर

खुला मार्केट एफडीआई
शोषण के हथियार हैं भाई
इनकी ब्यूह समझ बूझकर
कर देंगे हम चकनाचूर
हम मजदूर हम मजदूर।