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मजाक बहुत मंहगा पडता है / सांवर दइया
Kavita Kosh से
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सच
कभी-कभी मजाक बहुत महंगा पड़ता है
चुपचाप लेटी थी नदी
मजाक-ही-मजाक में
ढीठ हवाओं ने छेड़ा उसे
मजाक-ही-मजाक में
बदमाश बादलों ने मारे छींटे
मजाक-ही-मजाक में
उद्दण्ड धाराओं ने उकसाया
आपे से बाहर हुई नदी
बांधे बंध नहीं रही अब
खतरे के किसी भी निशान का
कोई खतरा नहीं इसे
लेकिन
बुरी तरह खतरे में है
मीलों-मीलों हर कोई
सच
कभी-कभी मजाक बहुत महंगा पड़ता है !