भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन केतना कलुस / उमाकान्त वर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:29, 31 अगस्त 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन केतना कलुस।
तनल रहल डोरी बा
काँपत बा धनुस।
मन केतना कलुस।
सपना सब टूट गइल
आपन सब छूट गइल
भेटत बा कतहूँ ना कवनो नहुस।
मन केतना कलुस।
अँजुरी में ताजमहल
आँसू के फूल
लोप रहल पुरवइया
चूवत जस धूल
तबहूँ ना थाकत बा आपन पउरुस।
मन केतना कलुस।
छिप आइल कंधा पर
आकुल बा देस
अभिमन्यु गढ़त बा
अबहूँ परिवेस
रोप रहल चिन्तन बा पउधा अकलुस।
मन केतना कलुस।