भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन खुशियों से लहराया / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:24, 25 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> मन चंचल काबू से बाहर …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन चंचल काबू से बाहर
मन को कैसे पकडूँ मैं,
मन पल में भग जाए कहीं पर
मन को कैसे जकडूँ मैं,

मन मारूँ ना मन की मानूँ
मन को मैंने समझ लिया,
मन से प्रीत लगाली मैंने
मीत बना कर जकड़ लिया,

मन को जीता जग को जीता
मन ख़ुशियों से लहराया,
जग जाहिर करता मैं ख़ुशियाँ
घर पे तिरंगा फहराया...