भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन खोया-खोया है / रामानुज त्रिपाठी
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:11, 28 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामानुज त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नेह के
घरौंदे में सोया है
मन खोया-खोया है।
आस-पास
चुप्पियों का
एक काफिला ठहरा,
पलकों में
कोई संकोच
दे रहा पहरा,
अधरों पर
एक मौन बोया है।
मन खोया-खोया है।
धुंधलाए
सपनों ने
धूमिल यादों ने,
हाथों में
हाथ सौंप
किये हुए वादों ने,
अथाह
झील में डुबोया है।
मन खोया-खोया है।