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मनीआर्डर की वह छोटी सी रसीद / भारत भारद्वाज

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जेजे के आग्रह पर एक बहुत पुरानी नष्ट कविता की पुनर्रचना

हज़ारों मील की दूरी तय करके
छूकर मेरे गाँव का मिट्टी-पानी
बाग़-बग़ीचे, रस्ते, घर
महीने बाद
आज लौटी है मनीआर्डर की
वह छोटी सी रसीद ।

लम्बे रास्ते में खो भी सकती थी यह रसीद
बारिश में गल भी सकती थी यह रसीद
रास्ते में विद्रोही लूट भी सकते थे
डाक-थैले में बन्द यह रसीद
लेकिन उसी तरह लौटी है
छोटी सी यह रसीद
जिस तरह लौटता है मौसम
शाम होने पर अपने घोंसले में
जैसे लौटती है चिड़िया
लौटी है यह रसीद ।

इस छोटी सी रसीद का स्पर्श करते
अभी रोमांचित हो रहा है मेरा तन-मन
प्रकम्पित मेरी आत्मा
आन्धी की तरह झकझोर रही है
मेरी चेतना को
रसीद पर दर्ज देख रहा हूँ मैं
कैथी लिपि में
अपने वृद्ध पिता का हस्ताक्षर
बक़लम ख़ास !

सम्भवतः बीसवीं सदी में
लुप्त होती लिपि का आख़िरी हस्ताक्षर

पिता कोर्ट-कचहरी से जुड़े थे
गाँव के लोग बिना किसी डिग्री के
उन्हें वक़ील साहब कहते थे
इसलिए कभी नहीं भूलते थे
अपने दस्तख़त के बाद लिखना
बक़लम ख़ास !

मेरे पिता कैथी लिपि में ही लिखते थे
किसी ने कभी नहीं सिखाई
मुझे यह लिपि
पिता के दस्तख़तों को देखते हुए
कैसे पढ़नी आ गई मुझे यह लिपि
इस उम्र में भी थरथरा नहीं रहे हैं
पिता के हाथ
ख़ूब सधे हुए हाथों से दस्तख़त किया है पिता ने

कैसा लगा होगा पिता को
जब मिला होगा
मेरी नौकरी का पहला मनीआर्डर
क्या पिता का चेहरा भी उसी तरह
खिल उठा होगा
जिस तरह खिल उठता था मेरा चेहरा
दुर्दिन में सहसा पाकर उनका मनीआर्डर
फिर तुरत-फुरत आनन-फानन में
बना लेता था
हॉस्टल के अपने दोस्तों के साथ
सिनेमा देखने का प्रोग्राम ।

मनीआर्डर मिलने पर
किस तरह प्रकट होगा अपना उल्लास
पिता के दस्तख़त करने के बाद
छिपा नहीं रहा होगा उनका उल्लास
मुझे मालूम है
रुपये गिनते
डाक पिऊन बाबू जगतसिंह से
ज़रूर कहा होगा उन्होंने
यह भग्गन का मनीआर्डर है !
ज़रूर मुस्कुराए होंगे मुंशी जी मन ही मन
मेरे विद्यार्थी जीवन में
मेरी करतूतों से किस तरह
भारी जाता था उनका डाक-थैला

मेरे पिता ने
मन ही मन यह सोचते
कि मेरा बेटा सचमुच सपूत निकला
दी होगी आवाज़ ईआ (माँ) को
’सुनती हो, भग्गन का मनीआर्डर आया है !
वह राजी-ख़ुशी है
बस, इसी बात का दुख है कि
बहुत दूर है हम लोगों से ।’

सबकुछ दर्ज है
मनीआर्डर की इस छोटी सी रसीद में
मेरा गाँव, गाँव की सड़क, पगडण्डी, सीवान
स्कूल के रस्ते, बाग़-बग़ीचा, पुस्तकालय व थाना
पिता का आर्थिक संकट
मेरी शिक्षा-दीक्षा, मेरा संस्कार
समय-साल
बस, नहीं दर्ज है तो
अपने गाँव के लिए बेचैन
मेरा वह तड़पता हुआ मन
जो बार-बार लौटता है अपने गाँव
बर्मा के मिजो हिल्स सीमावर्ती ज़िला में ।