भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मरना / महमूद दरवेश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:53, 3 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महमूद दरवेश |संग्रह= }} <Poem> दोस्तो! आप उस तरह तो न म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दोस्तो! आप उस तरह तो न मरिए
जैसे मरते रहे हैं अब तक

मेरी विनती है- अभी न मरें
एक साल तो रुक जाएँ मेरे लिए
एक साल
केवल एक साल और-

फिर हम साथ-साथ सड़क पर चलते हुए
अपनी तमाम बातें करेगें एक दूसरे से
समय और इश्तहारों की पहुँच से परे-
कब्रें तलाशने और शोकगीत रचने के अलावा
हमारे सामने अभी पड़े हुए हैं
अन्य बहुतेरे काम।

अनुवाद : यादवेन्द्र