भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मरियम / नजवान दरविश / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:21, 7 नवम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नजवान दरविश |अनुवादक=अनिल जनविजय...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी माँ के सिर पर इन दिनों ईसा के बारे में पढ़ने का जुनून सवार है।

मैं अक्सर देखता हूँ कि उनकी चारपाई पर किताबों का ढेर लगा हुआ है।उनमें से ज़्यादातर किताबें मेरी ही ख़रीदी हुई होती हैं। उनमें उपन्यास होते हैं, परचे होते हैं, धार्मिक और साम्प्रदायिक विवादों तथा खण्डन-मण्डन से जुड़ी किताबें होती हैं या फिर वे किताबें लेखकों के बीच हो रही विचारों की मार-धाड़ के बारे में होती है। कभी-कभी जब मैं उनके कमरे के पास से गुज़र रहा होता हूँ, वे मुझे बुलाती हैं कि मैं उन विवादों और झगड़ों के बारे में उन्हें बताऊँ और समझाऊँ। ( कुछ ही समय पहले मैंने कमाल सलीबी के विचारों को समझने में उनकी सहायता की थी। ये वही कमाल सलीबी हैं, जिनका सिर कैथोलिकों ने पत्थर से कुचल दिया था।)

मेरी माँ जब ईसा के बारे में पढ़ना और जानना चाहती है तो उसका सिर हर समय किताबों में घुसा रहता है। मैंने कभी अपनी माँ को निराश होते हुए नहीं देखा। पहले इन्तिफ़ादा<ref>बदलाव के लिए संघर्ष</ref> में मैं शहीद नहीं हुआ था। दूसरे में भी नहीं। और तीसरे इन्तिफ़ादा में भी मैं जीवित बच गया। और यह मेरे और आपके बीच की बात है कि किसी भावी इन्तिफ़ादा में भी मैं शहीद नहीं होऊँगा और न ही किसी फन्दे में फँसा कोई मूर्ख मेरी हत्या कभी कर पाएगा।

माँ मेरी, किताबें पढ़ती हैं और उनके हर पेज के बारे में उनकी दकियानूसी कल्पनाएँ मुझे सलीब पर चढ़ा देती हैं ... जबकि मैं कुछ नहीं करता। बस, नित नई-नई किताबें लाकर उन्हें देता हूँ , जो भालों की तरह होती हैं।

और मार-धाड़ करती हैं।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

शब्दार्थ
<references/>