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मसला ये तो नहीं की सिन-रसीदा कौन था / अशअर नजमी

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मसला ये तो नहीं की सिन-रसीदा कौन था
हाँ मगर महफ़िल में तेरी बर-गुज़ीदा कौन था

फ़ैसला जिस का भी था तेरा नहीं मेरा सही
वक़्त-ए-रूख़्सत सर झुकाए आब-दीदा कौन था

एक क़तरे की तलब और था समंदर सामने
बज़्म-ए-याराँ में भला वो बद-अक़ीदा कौन था

तुम भी थे सरशार मैं भी ग़र्क-ए-बहर-ए-रंग-ओ-बू
फिर भला दोनेां में आख़िर ख़ुद-कशीदा कौन था