Last modified on 8 दिसम्बर 2011, at 17:17

महापुरुष / रामनरेश त्रिपाठी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:17, 8 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी |संग्रह=मानसी / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(१)
बदन प्रफुल्ल दया धर्म में प्रवत्त मन
मधुर विनीत वाणी मख से सुनाते हैं।
प्रेमी देश जाति के अनिंदक अमानी सदा,
हेर हेर बिछुड़े जनों को अपनाते हैं॥
पर-सुख देख जो न होते हैं मलिन चित्त,
दीन बलहीन को सहाय पहुँचाते हैं।
ऐसे नर-रत्न विश्व-भूषण उदार धीर,
ईश्वर के प्यारे महापुरुष कहाते हैं।

(२)
वे ही जन धन्य हैं जो नित परमारथ को,
स्वारथ समझ दुखियों को अपनाए हैं।
मन में उदारता करों में दान वीरता,
बचन में मधुरता नयन सरसाए हैं॥
राग, द्वेष, मान, अपमान, अभिमान, क्रोध,
जिनके स्वभाव को न मलिन बनाए हैं।
हरि-पद-पंकज में जिनके रमे हैं मन,
हरि मन मंदिर में जिनके समाए हैं॥