भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ की फरियाद / सुधा ओम ढींगरा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:12, 17 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा }} <poem> सूरज से कहो रौशनी न दे अंधेरो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूरज से कहो
रौशनी न दे
अंधेरों में रह लूंगी.

चाँद से कहो
चाँदनी न दे
बिन चाँदनी जी लूंगी.

तारों से कहो
अपनी चमक न दें
रास्तों में भटक लूंगी.

ऋतुओं से कहो
रंग बदलना छोड़ दें
बेरंगी ही रह लूंगी.

सब दुःख सह लूंगी
पर बेटा मेरा लौटा दो मुझे
वह सिर्फ़ देश प्रेमी और
सिपाही ही नहीं, इन्सां भी है.

२० वर्ष भी पूरे नहीं
किए उसने,
लड़ने का ही नहीं
जीने का भी हक़ है उसे.