भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मां / श्याम महर्षि

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:58, 18 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मां थारै पगां कनै
बैठ‘र
बातां करयां नैं
बीतग्या बरसां रा बरस
न थे कीं कैयो
न म्हैं कीं पूछ्यो थांनैं
कै कांई हाल-हुवाळ है थांरा।

मां टाबर पणै मांय
अलेखूं बातां रा सवाल
पूछतो थानै
अर थे बिना उथळ्यां
देंवता रैया जवाब।

मां फेरू ई
थे
न कीं पूछ्यो
अर न कीं
कैयो म्हनैं।