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मां भी किथे नक़्श हुउसि, तेज़ हवाउनि खां पुछो / एम. कमल

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मां भी किथे नक़्श हुउसि, तेज़ हवाउनि खां पुछो।
ही पतो इतिहास जे पुर-खू़ने अदाउनि खां पुछो॥

वसक्त जे मरहम जो भला छो नथो अहसानु खणे।
ज़ख़्म झुरीअ दिल जे जिद्दी फट जे वफ़ाउनि खां पुछो॥

मुरिक खे आयो कॾहिं, जीअ जो ग़मु सूरु सलणु।
दिल जी ख़बर लुड़िक जे बेलफ़ज़ सदाउनि खां पुछो॥

नूर-नज़र भी छॾे विया साथु अंधेरे में कमल।
छा छा न थियो वक्त जे बेरहम अदाउनि खां पुछो॥