भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मानस का स्वाध्याय रही माँ / शिव ओम अम्बर

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:39, 13 अप्रैल 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिव ओम अम्बर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मानस का स्वाध्याय रही माँ,
श्रद्धा का पर्याय रही माँ।

संध्या तुलसी पे सँझवाती,
प्रातः नमः शिवाय रही माँ।

विघ्नों को प्रशमित करने के,
सौ-सौ सिद्ध उपाय रही माँ।

आशीषों, मंगल-वचनों का
सम्मूर्तित समुदाय रही माँ

पैबन्दों में भी मुसकाती,
गरिमा का अध्याय रही माँ

पुष्ट रहे घर भर, चिन्ता में,
आजीवन कृशकाय रही माँ।