भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मायक आशिर्वाद / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:47, 20 जुलाई 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर सँ बहराइतेँ माइ कहलनि
जा, ...जाए छs त मुदा
एकटा बात मोन मे खोइस लs
जखन कहियो आकाश बाटे जहिs त
सम्हरि केँ चलिहs आ किछु आन चीज नहि छूबिहs
चान तरेगनक गाम आएत
लागत पैरक ठेस त टूटि जायत
बड्ड नोखगर होइत अछि घोपाइयो जाइत
जखन रौद फुटत तखने यात्रा करिहs
किएsकि रौदे मे रहय छै ठंढक छॉव
भगवाने बचेताs तोरा सभ दुख सँ
हमर आशीर्वाद त साथहि छs “बऊआ”