भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मार येक खैड़ै / धनेश कोठारी
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:10, 2 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धनेश कोठारी |अनुवादक= |संग्रह=ज्य...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तिन बोट बि दियाली
तिन नेता बि बणैयाली
अब तेरि नि सुणदु
त मार येक खैड़ै
ब्याळी वु हात ज्वड़दु छौ
आज ताकतवर ह्वेगे
अब त्वै धमकौंणु च
त मार येक खैड़ै
वेंन ही त बोलि छौ
तेरू हळ्ळु गर्ररू ब्वकलु
तु निशफिकरां रै
अब नि सकदु
त मार येक खैड़ै
तेरि जातौ छौ थातौ छौ
गंगाजल मा वेन
सौं घैंट्यै छा
अब अगर नातु तोड़दु
त मार येक खैड़ै