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मार्केज के पुनर्पाठ - 3 / अंचित

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(शायर दोस्त राहुल के लिए)

और औरतें होंगी
जो इंतज़ार करेंगी तुम्हारा
कि तुम लौटो जंगों से उनकी तरफ़,
तुम्हारे घाव उनकी संवेदना के पात्र बनेंगे
उनकी याद में तुम कई बार विरह गीत बनोगे
वो सुंदर होंगी, तुम्हारी आत्मा में, उनके जितने भी चित्र होंगे...
वो तुम्हारे पूर्व प्रेमों के चिह्न सहलाती हुई
तुमसे प्रेम करेंगी, तुम्हारे शयनकक्ष में छोड़ेंगी अपने स्वप्न
उनके कोमल वक्ष तुम्हारी कामना में फिर देवता बनेंगे
प्रेम की आख़िरी पंक्ति से एक दिन, मेरे यात्री
लौटोगे तुम फिर मंच की ओर वापस
अपनी यात्रा समाप्त करते हुए-
उनकी लालसाओं के लिए
अपने दंभ घसने के दिन फिर आएँगे।

फिर से-

उन औरतों के तुम पहले पुरुष नहीं होगे,
जैसे वह तुम्हारी पहली औरतें नहीं होंगी।

भूल जाने की अचूक दवा
कोई नहीं है दुनिया में।

फिर भी आगे बढ़ते हुए हम अलग-अलग गंधों में बिचरेंगे
हम और कुछ कर नहीं सकते,
कुछ बस में नहीं है,
प्रेम एक दुर्घटना की तरह ही याद रहता है,
अगली दुर्घटना तक।

दुखता हुआ घाव भर जाता है समय के साथ,
हमारा नायक़त्व इन सचों से बचता हुआ, मुँडेरें ढूँढता,
सूरज में जलता रहेगा।

प्रेम करते हुए और कविता करते हुए
हम भूलते रहेंगे सही और ग़लत कि अंत में
सिर्फ़ प्रेमी होना ही अंतिम लक्ष्य।

मान कर हम चलेंगे
युद्ध की ओर कि एक आदर्श औरत बैठी है
पूरी दुनिया से विद्रोह कर हमारे लिए अपनी बाहें खोले
एक शयनकक्ष है स्वपन की सबसे अंदर की दीर्घ गुफ़ाओं में
जहाँ तुम उसकी कमर से उलझे हुए हो।

जीवन हमारी भिक्षा की थैली में कुछ नहीं डालता, और आदर्श के तालु
सिर्फ़ संघर्ष का स्वाद क़बूल करते हैं।

हमारा प्रयोजन सिर्फ़ प्रेम करना है और युद्ध-
दिन इसी संकल्प के साथ शुरू होगा।