भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माल खाऒ / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:15, 29 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चुहिया रानी रोज बनाती,
लौकी की तरकारी|
कहती है इसके खाने से,
दूर हटे बीमारी|

पर चूहे को बीमारों का,
भोजन नहीं सुहाता|
कुतर कुतर कर आलू गोभी,
बड़े प्रेम से खाता|

उल्टी सीधी सीख जमाने,
की ना उसको भाती|
झूठ कभी ना बोला करता,
सच्ची बात सुहाती|

बजा बजा डुगडुगी रोज वह,
लोगों को बुलवाता|
बड़े प्रेम से यही बात फिर,
सबको ही समझाता|

बढिया भोजन करने से ही,
हटती हर लाचारी|
माल खाओ और मस्त रहो,
कहती दुनिया दारी|