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मालू राजुला / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रंगीली वैराट<ref>एक जगह</ref> मा, रन्दो छयो रंगीलो दोलाशा<ref>दोलाशाह, नाम</ref>
छौ राजा दोलाशाही, रंगीली को राजा!
रंगीली दोलाशाही, ह्वैगे असी को विरबै<ref>वर्ष</ref>
बुडयांदी<ref>बुढ़ापे</ref> बगत लगी, तीजा जसी<ref>जैसी</ref> जोन<ref>चाँद</ref>।
दोलाशाही राजा की, राणी पंवारी बतैं छै
वीं रांणी को विधाता गर्भ रई गए
एको दूजो मास लैगे, तीजो चौथो मास,
पाँचों सातों मास लैगे, आठों नवों मास,
दसाँ मास राणी, वैदन<ref>दर्द</ref> लगी गए!
बुड्याँदी बगत हे राजा, कनो गरण<ref>ग्रहण, कलंक</ref> लैगे।
विधाता की लेख<ref>माया</ref> छई, राजा को बेटा ह्वैगे!
गया का बरमा<ref>ब्राह्मण</ref> बुलौंद राजा, काशी का पण्डित,
देखा मेरा बरमा, ये को राश-भाग!
तब बरमा, पातुड़ी देखदा;
राजा इनोजरम, यो भौंपति भौंपाल
रंगीली को राजा जरमे, मालूशाही नाम होलो येको!
हे राजा, गया को बरमौन कुछ अलप<ref>अल्प, अल्प ग्रही</ref> बतैले,
हे राजा, मालशाही को पंचुला ब्यौ करण!
नितर<ref>नहीं तो</ref> तुम पर पाप लगण!
सौक्यानी देश मा, सौक्यानी सोनूशाही,

सोनूशाही की नौनी, नौरंगी राजुला
तब गैन गया का बरमा<ref>ब्राह्मण</ref>, सौक्यानी देश मा,
सौक्यानी देस मा, माँगल छा गायेणा!
राजा सोनशाही की, जरमी<ref>जन्मी</ref>, नौरंगी राजुला
आनन्द बड़ई बजदी, सौक्यानो कोट मा!
तब बोलदा गया का बरमा-
हे राजा सोनूशाही, तेरी नौनी जरमे,
हमारा राजा दोलाशाही को, नौनो होलो मालूशाही,
अपणी नौनी की तू, जबान<ref>वचन</ref> दी दे।
नौरंग राजुला होलो, दसरंग मालूशाही।
तब सोनूशाहीन, राजुला की जबान
दीयाले वीं, रंगीली वैराट।
पंचुला की नौनी छै, पंजुला को नौनो,
जौ जबान ह्वैगे, माँग जाग।
मँगल पिठाई लगे, ढोल दमौं जज्या।
पर राजुला को छौ, बल नाड़ी वेद<ref>भेद, दोष</ref>,
ससुरा तैं तब वो पिड़ाये
राजा दोलाशाही, स्वर्गवास ह्वैगे।
मन्त्री तन्त्रियोंन, इनो मन्त्र करे-
ई निरभागी ब्वारी<ref>बहू</ref> का मांगण से
ससुरा मरी गए।
या ब्वारी हमून, कतई<ref>कैसी भी</ref> नी ल्यौण।
मालूशाही छोटू छ, तै मा नी सुपौणा
कि राजुला की करीं छै जुवान।
हे जी, बरसू<ref>बरसों</ref> बीती गैन<ref>गये</ref> तब,
पंचुला की नौनी, राजुला अक रंगीली,
सुघर<ref>सुन्दर</ref> तरुणी ह्वैगे।
बुराँस<ref>एक फूल</ref> को-सी फूल, फूली गए राजुला।

रूप् की छलार<ref>लहर</ref> आँख्यों मा वीं का,
जवानी भरेणी, पाणी को-सी ताल।
राजुला होली, राजों की बेटी,
देवी को-सी रूप होलो,
सूरज को-सी झल्यारो<ref>चमक</ref>।
होई गए राजुला, ब्यौवोणा का लैख<ref>लायक</ref>,
पर हे जी रंगीली का राज की
औणी<ref>आना</ref> नी छ जाणी<ref>जाना</ref>।
पंचुला की नौनी माँगी छई,
तब बिटी<ref>से</ref> करे, नी कैन<ref>किसी ने</ref> खबर सार।
राजुला माँगण तब, औंदा दुरु-दुरुन राजा,
राजुला होली भली बाँद<ref>सुन्दरी</ref>, व्यवैक ल्यौण।
राजा सोनूशाही पर, भौत खरी<ref>मुसीबत</ref> ऐगे,
धरम को बाँध्यूं छौ, शरम की मान्यूँ।
रंगीली राजान हमारो, कनो नाक कटाये,
ई बेटीन कनी दशा कराये।
बड़ा-बड़ा राजा ऐन, टालदो रैन ऊंतैं<ref>चर्चा</ref>।
पर जलन्धर देश मा, रन्द छा विधनी विजैपाल,
राजुला की चारजोइ, सूणी तब तौन,
घूमदा-घूमदा आई गैन, सौकानी देश-मा,
सेवा मानी, सेवा मानी, राजा सोनूशाही,
राजुला को डोला हमन, जलन्धर देश पौंछोण।
देन्दी छै ससुरा त, कट दे जुबान।
नितर<ref>नहीं तो</ref> तेरो सौकानी राजा, बाँजा<ref>बर्बाद</ref> डाली द्योला।
अपणा नौ<ref>नाम</ref> का, विघनी छौं हम, विजैपाल छाँ।
डर का मारा सोनू शाहीन, ना किलै<ref>क्यों</ref> बोलणू छौ?

राजुला की जुवान, वैन ऊं दियाले।
आठवाँ ऐत्वार<ref>रविवार</ref>, औली हमारी बरात,
तब विघ्नी विजेपाल, अपणा जलन्धर गैन।
रूवसी राजुला छई, आम जसी फाँक,
कनी तकदीर फूटे, गई जलन्धर देस?
तब बोदी वा राजुला, चल चाची छमुना,
सारा जाँद अपणो देस देखाइयाल,
वण देखाइयाल वासो।
उच्च पर्वत बिटी<ref>से</ref>, सारी दुनिया देखदी
हे चाची, शैरू <ref>शहर</ref> मा, के कु शैर पियारो?
राजों मा कु राजा पियारो?
मेरी तकदीर फूटे, गये जलन्धर देस।
तेरी तकदीर फूटे, बेटी गई जलन्धर देस,
ओ रंगीली बैराट मा, तेरी जुबान दियेणी छै
रंगीली को राजा छयो, नौरंग मालूशाही,
नौरंगू मालूशाही, दसरँगी राजुला।
ओ कख छ रंगीलो बैराट हे चाची।
ऊँचा पंवाली काँठा<ref>चोटी</ref> देख तै राजुला।
अच्छुत मैं जांदूं छमुना चाची, वै रंगीलीकोट मा,
हात धरे टालखी<ref>चुररिया</ref> राजुला न,
वैराट<ref>प्रस्थान किया</ref> पैटी गए राणी।
हाँ, सु कनो सोनशाही को, छयी इस्टदेव भैरव,
भैरव का कानू मा, खबर पौंछी गए।
विधनी विजैपाल, सोनगढ़ तोड़ी जाला
वो राजुला की, कनी<ref>कैसे</ref> मति<ref>बुद्धि</ref> हरे।
डेढ़ हात भैरों, जान्द राजुला की ढूँड,
वैराट को राजा, स्यो रंगीली मालूशाही,

मालू शाही का होला, रौल्या<ref>शोर मचाने वाले</ref> ओल्या<ref>दो</ref> घट।
तौं घटू मू पौंछीगे, तब रंगाली राजुला,
हे जी भैरव न, तब टाड<ref>रोक दिया</ref> कैले बाड!
घर त त्वई राजुला, औणू होल
में सोनूशाही को, डेड हात भैरव!
तेरो मड़ो<ref>मुर्दा</ref> मरयान, कुलदेव भैरव,
किलै<ref>क्यों</ref> रस्ता रोकदी, मैं जाण दे!
छट छोड़े भैरव न, रस्ता राजुला भागी,
रूबसी राजुला पौंछीगे, रंगीला बैराट!
राजुला से भी पैले, पौंछीगे भैरव,
मालूशाही क तैं, निन्दरा<ref>नींद</ref> जाप<ref>खुमारी, सम्मोहन</ref> ह्वेगे,
बार बरस की वे निन्दरा पड़ोगे!
दस रंग राजुली को, हिया भरी औन्द,
हे मेरा भैरव, कनो करे त्वैन मैकू?
तेरी जोई<ref>स्त्री</ref> भैरव, जू राँड होयान।
लपटौन्दी<ref>उठाया</ref> झपटौदी<ref>जगाया</ref> मालूशाही नी बीज<ref>उठा</ref>,
रूबसी राजुला, तब कागली लेखदो-
मैं पंचुला की कन्या मालूशाही,
माँगणी<ref>सगाई</ref> कबूल कै छई।
विधनी विजैपाल लिजाणा छन मंई<ref>मुझे</ref>,
त्वे बियाणी<ref>ब्याहना</ref> मंई त,
ऐ जाणू जलन्धर देस मा।
हीरा की गुण्ठी चढ़ाये वैका हात,
रोन्दी-बराँदी राजुला, सौकानी देस मा ऐ गए।
तब डेढ़ हात भैरवन मालूशाही को
जाप<ref>सम्मोहन</ref> खोली याले।
हीरा की गुण्ठी<ref>अंगूठी</ref> देखे, वैन अपणा हात,

तब राजा को, हिया भरी औंद,
राजुला मेरी राणी, होली मेरो पराणी।
हे राम, वा कतना, दुख सैणी होली,
आँसू छोड़दी होली, पथेणा<ref>रोती हुई</ref> नेतर।
हे राजा, तब धरे, जोगी को रूप,
कनो छोड़े रंगीलो वैराट,
माता जी छोड़ दी, वैका पथेणा नेतर,
कख गई होली, मालूशाही मेरो लाडो<ref>लाडला</ref>।
तब सूणदी माता, रंगीली बैराट को राजा
गै<ref>गया</ref> गुरू गोरख की थली<ref>स्थान</ref>
गुरू जी गोरख तब, वै सणी देन्दा विद्या।
बोदा तब गुरू गोरखनाथ-
जा मेरा चेला, तू मां कर घर,
भोजन करी अऊ।
तब औन्द मालूशाही रंगीली वैराट
माता को शरीर तब भरी ओन्द
कनो<ref>कैसा</ref> दिखेन्दी<ref>दिखाई देता</ref> मेरा मालूशाही की चार<ref>तरह</ref>।
मेरो मालूशाही भी इनी ही छौ।
हे माता, एक सरूप् का कना कना होण्दान,
हे माता, तू मैं आशिर्वाद दे
आज भोरजन तेरा घर मा होलू।
पकौंदी भोजन तब बुडढ़ी माता,
हे जी माता को शरीर धीरज धरद-
मेरो मालूशाही छयो पंचगास्या ज्वान।
यो पंचग्रासी हालो त मेरो मालू ही छ।
तब बुलाये वींन जोगी भोरजन जिमौणा-
एक गास धरे जोगीन गाई का नौऊ<ref>नाम</ref>,

शब्दार्थ
<references/>