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मिलना तो मन का होता है / बलबीर सिंह 'रंग'
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मिलना तो मन का होता है, तन की क्या दरकार बटोही।
जो मिलकर भी मिल न सके हों
सोचो तो उनकी मजबूरी,
धन्यवाद उसको जिसने की
और अधिक मंजिल की दूरी।
शायद तुम इस पथ पर आए, पहली-पहली बार बटोही
मिलना तो मन का होता है, तन की क्या दरकार बटोही।
तन काक्या, माटी की महिमा
मन चाहे कंचन बतला दो,
मन का क्या, पिंजरे का पंछी
जो सुनना चाहो सिखला दो।
माथे के श्रम सीकर लेकर, सबके चरण पखार बटोही।
मिलना तो मन का होता है, तन की क्या दरकार बटोही।
सुमन मिले ऐसे मनमौजी
जो शूलों-सी चुभन दे गए,
शूल मिले ऐसे अनचाहे
जो जीवन-रस-गंध ले गए।
मेरे दुर्बल मन ने माना उन सबका आभार बटोही।
मिलना तो मन का होता है, तन की क्या दरकार बटोही।