भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुँह न मिलें / लीलाधर जगूड़ी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:30, 30 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = लीलाधर जगूड़ी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> एक सुर...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक सुरंग पूरब से
दूसरी पच्छिम से
एक जन्म की ओर से
दूसरी मृत्यु की ओर से आ रही है
दोनों सुरंगों के जब तक मुँह न मिल जाएँ
तभी तक सुरक्षा है

मैं इंजिनियरिंग नहीं जानता शब्द-भेदन जानता हूँ
चाहता हूँ जन्म से मृत्यु की ओर आने वाली
सुरंग का लेबल गड़बड़ा जाए

दोनों अगर मिल गए बारूदी सुरंगों की तरह
इंजिनियरिंग भले ही सफल हो जाए
जीवन विफल और विरूप हो जाएगा ।