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मुक्तक / नवीन कुमार सिंह

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आँख खोला जिंदगी सौगात लेकर आ गई
कुछ पहर, कुछ मौसमों को साथ लेकर आ गई
ईश ने आशीष देकर जब यहाँ भेजा हमें
माँ मिली जो स्नेह की बरसात लेकर आ गई

माँ बापू परिवार त्याग जब पी के घर पग धरती है
स्नेह समर्पण से नारी संसार नया इक गढ़ती है
माथे के सिंदूर के बदले तन मन अर्पण कर डाला
रहे सुहागन ही जीवन भर, यही दुआएं करती है

कौन व्यथा समझे नारी की, उसकी कथा निराली है
बाँट बाँटकर खुशियां सबको उसकी झोली खाली है
माँ, बहन और बेटी बनकर स्नेह लुटाया जीवन भर
उसके होने पर ही घर में, होली और दिवाली है

सत्य कथन है साथ चलेगा जीवन भर सत्कर्म हमारा
क्षमा, दया और त्याग, तपोबल में निहित है मर्म हमारा
विश्व गुरु सदियों से हैं हम और धरा पर सदा रहेंगे
जीवन को जीना सिखलाता सत्य सनातन धर्म हमारा

धरती की पूजा में मुझको मान दिखाई देता है
भारत माँ की मूरत में भगवान दिखाई देता है
और मुहब्बत देश से अपने बस इतना करता हूँ कि
आँखों में मेहबूब के हिंदुस्तान दिखाई देता है