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मुझको अच्छाई की ख़्वाहिश में कहाँ अच्छा मिला / कृष्ण 'कुमार' प्रजापति

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मुझको अच्छाई की ख़्वाहिश में कहाँ अच्छा मिला
ज़िन्दगी की रोशनी में मौत का साया मिला

सबको ये दावा था हम ईमानवाले हैं ,मगर
वक़्त पर ईमान सबका ताक पर रक्खा मिला

जिस्म था मौजूद लेकिन जहनो दिल हाज़िर न थे
आजकल तो भीड़ में हर आदमी तनहा मिला

पाँव में रस्ते बँधे थे आँख सपनो में थी गुम
हाजतों की पीठ पर हरदम लदा बस्ता मिला

कौन ऐसा है कि उसको देखता है बेहिजाब
जिस तरफ़ मेरी नज़र उठ्ठी उधर परदा मिला

आइना किसको दिखाता किस पे करता एतराज़
हर किसी इंसा के चेहरे पर मेरा चेहरा मिला

हर कोई उलझा हुआ है इस खिलौने में “कुमार”
सबके दिल को आस सबकी आँख को सपना मिला