भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझको न देख दूर से , नज़दीक आ के देख / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
Kavita Kosh से
Purshottam abbi "azer" (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:00, 17 सितम्बर 2011 का अवतरण
मुझको न देख दूर से , नज़दीक आ के देख
पत्थर हूँ ,हल्का फूल से, मुझको उठा के देख
चेहरे के दाग़ एसे तो ,आते नहीं नज़र
दरपन के रु-ब-रु ,ज़रा नज़रें मिला के देख
लफ़्ज़ों की आत्मा में , उतरता नहीं कोई
विपदा तू अपनी,अपने ही ,घर में सुना के देख
खुशबू को कैसे ले उड़ा झोंका हवा का दोस्त
तू भी तो अपने प्यार की खुशबू लुटा के देख
यह क्या क़ि बुत बना लिए पत्थर तराश के
तू आदमी को आदमी "आज़र" बना के देख