भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे उसकी तमन्ना है उसे मेरी ज़रूरत है / ओम प्रकाश नदीम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:22, 27 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रकाश नदीम |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे उसकी तमन्ना है उसे मेरी ज़रूरत है
ये तो बुनियाद है इस पर इमारत की ज़रूरत है

ज़रूरत सब की हो सकती है पूरी शर्त है लेकिन
उसे उतना ही मिल पाए जिसे जितनी ज़रूरत है

मुहब्बत हम लुटाते हैं सर-ए-महफ़िल खुले दिल से
लुटाने में ये क्या देखें किसे कितनी ज़रूरत है

ग़लतफ़हमी हुई साबित जो ख़ुशफ़हमी थी यारों को
कि उनके पास पैसा है उन्हें किसकी ज़रूरत है

हमारे बीच कल कुछ था मगर अब और ही कुछ है
जो कल तेरी ज़रूरत थी वो अब मेरी ज़रूरत है

दरीचे बन्द हैं दर बन्द हैं सारे, अरे भाई
चराग़ों के लिए थोड़ी हवा की भी ज़रूरत है