भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे पसन्द है तुम्हारी ख़ामोशी / पाब्लो नेरूदा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 27 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पाब्लो नेरूदा |अनुवादक=भावना मिश...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे पसन्द है तुम्हारी ख़ामोशी, जैसे तुम मौजूद ही नहीं
और सुन रही हो मुझे बहुत दूर से कहीं,
पर नहीं छू पा रही है मेरी सदा तुमको
यूँ लगता है कि उड़ान भर ली हों तुम्हारी पलकों ने
यूँ लगता है कि एक बोसे ने मुहरबन्द कर दिया हो तुम्हारे होठों को।

क्योंकि इन सब चीज़ों पर तारी है मेरी आत्मा का साया
इसलिए तुम भी भरी हुई हो मेरी आत्मा की मौजूदगी से
तुम मेरी रूह का ही तो अक्स हो,
जैसे किसी तितली का स्वप्न
और तुम दिखती हो गहरे शोक के किसी शब्द-सी ।

मुझे पसन्द है तुम्हारी ख़ामोशी, जैसे तुम दूर हो ।
दूर से आती एक कराह हो तुम, जैसे किसी तितली के कण्ठ से निकली एक आवाज़
तुम सुन रही हो मुझे बहुत दूर से कहीं,
और नहीं पहुँच रही है मेरी सदा तुम तक ।

इसलिए अपने मौन के असर से, अब ख़ामोश हो जाने दो मुझे भी
और बातें कर लेने दो मुझे तुम्हारी ख़ामोशी से
जो रौशनी-सी निर्मल है और जिसने खींच दिया है मेरे चारों ओर एक पवित्र घेरा ।

तुम रात-सी हो, शान्त और नक्षत्रों के साथ अपनी विराटता में मौजूद ।
तुम्हारी ख़ामोशी एक सितारे-सी है, जो बहुत दूर तो है पर उतनी ही सत्य भी
मुझे पसन्द है तुम्हारा ख़ामोशी, जैसे तुम मौजूद ही नहीं, जैसे तुम दूर हो और उदास हो
जैसे तुम मृत हो
जैसे तुम हो ही नहीं ।

उस पल सिर्फ एक शब्द, सिर्फ एक मुसकान ही काफ़ी होगी
और मैं सिहर उठूँगा
ये सोचकर कि जो मैंने सोचा वो सच नहीं ।

भावना मिश्र द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित