भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुद्दत-सी हो गई ,गम-ए-दर्द को सम्भाले/पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

Kavita Kosh से
Purshottam abbi "azer" (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:55, 12 अक्टूबर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुद्दत-सी हो गई , गम-ए-दर्द को सम्भाले
हमको भी यारो कोई , अपने गले लगाले

हिचकी न थम रही है ,पलकों से निकले आँसू
यादों में हमने इनको , रक्खा हुआ था पाले

तौफीक दे तू मौला ,या एसा निजाम दे- दे
भूखे को दे सँकू मैं दो वक्त के निवाले

हमको कसम तुम्हारी ,कुछ तो यकीन कर लो
हम भी न उफ़ करेंगे , चाहे कोई सताले

"आज़र"करें क्या शिकवा , उनको नहीं है चिंता
अब जी क्या करेंगे , हमको खुदा उठा ले