भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुनिया तू शैतान बड़ी / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:43, 18 सितम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे चि‍ढ़ाकर पूछा करते
मुझसे मेरे दादाजी-
‘बोलो, तुमको कौन है प्‍यारा
मम्‍मीजी या पापाजी ?’
क्‍या जवाब दूँ सोच-सोचकर
होती मुझको हैरानी,
मम्‍मी की मैं रानी बेटी
पापा की बि‍टि‍या रानी।
मैं कह देती- ‘मम्‍मी प्‍यारी,
प्‍यारे-प्‍यारे पापाजी,
मम्‍मी-पापा से भी प्‍यारे
लेकि‍न मेरे दादाजी।’
दादाजी के होंठों पर तब
आ जाती मुस्‍कान बड़ी,
कान पकड़कर मेरा कहते-
‘मुनि‍या तू शैतान बड़ी।’