भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुर्गे की सीख / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:02, 28 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> मुर्गा बोला नहीं जगा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुर्गा बोला नहीं जगाता
अब तुम जागो अपने आप ।
कितनी घड़ियाँ और मोबाइल
रखते हो तुम अनाप-शनाप ।

मैं भी जगता मोबाइल से
तुम्हें जगाना मुश्किल है
कब से जगा रहा हूँ तुमको
तू क्या मेरा मुवक्किल है ।

समय पे सोना, समय पे जगना
जो भी करेगा समय पे काम
समय बड़ा बलवान जगत में
समय करेगा उसका नाम ।