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मेज़ / देवी प्रसाद मिश्र

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वे लोग मेज़ के चारों ओर बैठे थे ।

एक आदमी ने यह कहा कि ईश्वर की ओर अधिक झुकाव की वजह से उसने शराब और सिगरेट छोड़ दी। उससे किसी ने यह पूछना चाहा कि मनुष्यों की ओर झुकाव का हाल का कोई वृत्तांत उसके पास है कि नहीं ।

काफी देर बाद एक आदमी ने दबी ज़बान से कहा कि उसे इसका कम अन्दाज़ा है कि वहशीपन से लडऩे में ईश्वर कोई मदद करता है कि नहीं । दूसरे ने कहा कि वह घुमन्तू कबाइलियों के लिए काम करता है। उसका कहना था कि जगहों को छोड़ते रहना दुनिया का सबसे बड़ा विचार है ।

एक आदमी एक घण्टे के भीतर एक लम्बी यात्रा पर निकलने वाला था। वह इस बात को इस तरह से कह रहा था कि जैसे वह अब कभी नहीं लौटेगा। जो स्त्री वहाँ बैठी थी उसकी बेटी अगले दिन अपना गाना मंच पर पहली बार गाने वाली थी। उसकी माँ ने कहना चाहा कि पहली बार मंच पर गाना पहली बार सेक्स जैसा नर्वसकारी होता है लेकिन कहा नहीं ।

उससे किसी ने पूछा कि तमाम सिद्धियाँ छींक कर विजय नहीं पा सकीं। क्यों। वह हँस पड़ी ।

एक आदमी ने कहा कि मैं अपनी आत्मकथा पूरी करने वाला हूँ लेकिन वह बहुत मामूली है। उसने बहुत विकलता से कहा कि आत्मकथा को एक आदमी ही लिख सकता है।
पता नहीं किस आदमी ने कहा कि वह किताबों को उसकी असाधारणता के लिए नहीं पढ़ता है ।

इस बीच आदमियों के बीच बैठी स्त्री को आभास हुआ कि उसे ढेर सारे प्रेम की ज़रूरत है लेकिन वह कहे तो किससे और किस तरह ।