भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे चेहरे पे सजाता है मेरे ज़ख़्मों को / अनिरुद्ध सिन्हा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे चेहरे पे सजाता है मेरे ज़ख़्मों को
आइना रोज़ दिखाता है मेरे ज़ख़्मों को

यूँ भी वो अपनी वफ़ाओं का सिला देता है
ग़ैर के बीच छुपाता है मेरे ज़ख़्मों को

याद के बन्द दरीचे पे मुसलसल आकर
कौन रह–रह के दबाता है मेरे ज़ख़्मों को

इस नए दौर में है खूब शरारत उसकी
मेरी नज़रों से गिराता है मेरे ज़ख़्मों को

भूल जाने का इरादा भी करूँ तो कैसे
कोई दिन–रात हँसाता है मेरे ज़ख़्मों को