भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे मन! तू दीपक-सा जल / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:03, 11 अगस्त 2014 का अवतरण
जल-जल कर उज्ज्वल कर प्रतिपल
प्रिय का उत्सव-गेह
जीवन तेरे लिये खड़ा है
लेकर नीरव स्नेह
प्रथम-किरण तू ही अनंत की
तू ही अंतिम रश्मि सुकोमल
मेरे मन! तू दीपक-सा जल
‘लौ’ के कंपन से बनता
क्षण में पृथ्वी-आकाश
काल-चिता पर खिल उठता जब
तेरा ऊर्म्मिल हास
सृजन-पुलक की मधुर रागिणी
तू ही गीत, तान, लय अविकल
मेरे मन! तू दीपक-सा जल