भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे वासन्ती सपने वो प्रेम के / इवान बूनिन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:21, 28 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=इवान बूनिन |संग्रह=चमकदार आसमानी आभा / इवान ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: इवान बूनिन  » संग्रह: चमकदार आसमानी आभा
»  मेरे वासन्ती सपने वो प्रेम के

मेरे वासन्ती सपने वो प्रेम के
जिनको देखूँ मैं हर सुबह नेम से
हिरणों के झुंड से जमा थे सारे
वहाँ उस वन में नदी के किनारे

हरे-भरे वन में गूँजा हलका-सा स्वर
उनकी सतर्कता थी इतनी प्रखर
रेवड़ विकंपित-सा दौड़ गया सुखद
क्षण-भर को चमकी ज्यों विद्युत की लहर

(23 जुलाई 1905)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय