मेरे सनम के पास जो कहां वो ताज़गी मिले / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
मेरे सनम के पास जो कहां वो ताज़गी मिले ,
कि बार-बार मिल के भी यही लगे अभी मिले !
खुशी में आपकी हुए जो लोग आप से भी खुश,
मिलें जो ऐसे लोग तो फिर और भी खुशी मिले !
ये लौ चिराग़ की है जो उसी में जल सके तो जल,
कि कब चिराग़ के तले किसी को रौशनी मिले !
ख़ुदा की बात शेख़ जी न कीजिए वो दूर है ,
बताइए कि आप क्या हैं ख़ुद से भी कभी मिले !
हुए हैं जब भी मश्वरे दिलो-दिमाग़ में कभी ,
कुसूरवार हर तरफ से हम ग़रीब ही मिले !
जनाब आप मौत का ज़रूर देखिएगा घर ,
किसे ख़बर कि ज़िन्दगी उसी जगह छुपी मिले !
ये रहमत-ए-ख़ुदा की भी कमाल कारसाज़ियां ,
पते ग़लत लगे ज़रूर , ठीक आदमी मिले !