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मैं / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

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सल्तनत -दर
सल्तनत
मैं तुम्हारी पीड़ियों
की कैद -बनी
तालों मे बंद रही -
युद्ध मे सत्ता
समझ उछाली गई
सीमायों के
आर -पार
मुझे बांटा
तोड़ा गया ....
परिवार मे
मेरे नाम से
न जाने कितने
अंकगणित
लिखे गये -
लगता है इन
सब के पीछे
तुम्हारी -एक
ही - भूख
थी -जो दबी
घुटी -तुम्हे
भटकाती रही ---
मुझे - खुला
देखने की
 मुझे
भोगने की भूख -
तुम ने अपनी
उस भूख
को - मापदंड
बना कर
मुझे - उकेरा
उल्टा -सीधा
भोगा- लटकाया .
जैसे नचाते रहे
मे - नाची -
ले दे के
आज भी -यही
कर रहे हो --
लेकिन आज
मैंने स्वेच्छा से
और तुम्हारी
आदिम इच्छा से
वशीभूत हो
चौराहे-चौराहे
गली -गलियारे
की हर नुक्कड़
पर -स्वयम को
नंगा
निरावरण
टांग दिया है --
अब मेरी
दो गिरह की
बची -खुची
अस्मित की
खिल्ली न उडाना .......!