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मैं अड़हा किसान / ध्रुव कुमार वर्मा

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सुरुज बिहनिया आके जगाथे,
चंदा लोरी गाके सुताथे।
करिया बादर मया बढ़ाथे,
बिजली लेथे प्राण
मैं अड़हा किसान॥1॥

गंगा हाबय मोर आंखी मां,
अऊर हिमालय मोर छाती मां,
देह सनाए मोर माटी मां,
बगरे हिन्दूस्थान॥2॥

गजब मयारू धरती मइय्या,
जेहा ओकर सेवा करइय्या।
तेकर बर ओ धेनू गइय्या,
दूहौ गेहूँ-धान॥3॥

धानके अचरा गजब लजावय,
बनकुकरा शहनाइ बजावय।
तम्भें मोला अइसे लागय,
मय हो गे एवं जवान॥4॥

गली मचावय शोर संवरिया,
खेत मां राधा गाय ददरिया,
दूध कटोरा असन तरिया,
सरग बरोबर जान॥5॥

कोरा कागज खेती बारी
लेके नागर अऊर कुदारी।
करथन हमन मेहनत भारी
लिखथन नवा पुराण॥6॥

धरती एसो कुंवारी रइगे,
रद्दा देखत दुवारी रइगे।
दुच्छा खड़े सवारी रइगे,
कैकई कस वरदान॥7॥

सत के सीता चोरी होगे,
गांधी के छेरी खोरी होंगे।
धरम इमान अघोरी होगे,
का होही मितान॥8॥

भूख प्यास के जुलूम सिराही,
चांदी के सुकवा मुंह लुकाही।
अऊ दुकाल के रात पहाही,
तब होही बिहान
मैं अड़हा किसान॥9॥