भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं इक चराग हूँ जलना है ज़िन्दगी मेरी / ज्ञान प्रकाश विवेक
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:28, 8 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= ज्ञान प्रकाश विवेक }} Category:ग़ज़ल <poem> मैं इक चरा...)
मैं इक चराग हूँ जलना है ज़िन्दगी मेरी
छुपी हुई है इसी दर्द में ख़ुशी मेरी
खड़ा हूँ मश्क लिए मैं उदास सहरा में
किसी की प्यास बुझाना है बंदगी मेरी
मैं एक ऐसा गडरिया हूँ, बकरियाँ सब हैं
चुरा के ले गया इक चोर बाँसुरी मेरी
मैं नंगे पाँव हूँ जूते ख़रीद सकता नहीं
पर इसको लोग समझते हैं सादगी मेरी
खड़ा हूँ क़ाग़ज़ी कपड़े पहन के बारिश में
ये हौसला है मेरा या है बेबसी मेरी
महानगर में अकेला तू जा रहा है तो जा
खलेगी एक दिन बेहद तुझे कमी मेरी.