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मैं एक पेड़ हूँ / हरेराम बाजपेयी 'आश'

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मैं एक पेड़ हूँ
मैं एक पेड़ हूँ,
जिसकी परिभाषा मात्र
जड़ ताना डलियाँ-पत्तियाँ
फूल/फल से नहीं बनती, वरन बनती है,
हमारे ताप से, हमारे त्याग से।
हमारी जड़ें। तुम्हारे बुज़र्गों के निशानी है,
जो इतिहास की तरह
गहराई तक गड़ी है, जमीन में।

हमारा ताना, तुम्हारा स्वाभिमान है
हमारी डालियाँ, तुम्हारा परिवार
हमारे फूल, तुम्हारा श्रंगार
हमारे फल, तुम्हारा धन,
हमारी पत्तियाँ तुम्हारा जीवन।

हमने अपना सम्पूर्ण गात
महर्षि दधीचि की तरह
तुम्हारे लिए निछावर कर दिया,
ताकि अभावो के असुर
तुम पर आघात न कर सकें
औए हमारा त्याग, तुम्हारे लिए प्रेरणा बन सके,
किन्तु तुम कितने कृतघ्न हो
कि मुझ ही पर आघात करने लगे,
क्योंकि तुमने मुझे मात्र एक पेड़ समझा
और पहचान के लिए दे दिए कुछ नाम,
पीपल, बरगद, सागौन, शीशम और आम,
मेरे विनाश पर तुम्हारा क्या होगा,
कहाँ से मिलेगी तुम्हें शीतल छाया,
कौन बचायेगा तुम्हें झंझावातों से,
और कैसे कायम रहेगी,
तुम्हारे वैभव कि माया।

तुम जिस शुद्ध हवा में,
साँसे लेकर जीवित हो,
उसका कारण हम हैं,
हमने ही तुम्हारे लिए, शिव बनकर
प्रदूषण का जहर पिया है,
और खुद मरकर तुम्हें जीवनदान दिया है

मेरा सम्बन्ध
तुम्हारे जन्म से लेकर अन्त तक है,
शून्य से लेकर अनंत तक है
अत: क्या अब भी बताना होगा,
कि हमारा विनाश
मात्र एक पेड़ का विनाश नहीं है,
वरन विनाश है, तुम्हारा
तुम्हारे जीवन का,
तुम्हारे कुल का
एक पेड़ का विनाश है
जीवन के अतीत का
वर्तमान का, भविष्य का,
हाँ सच है कि
मैं एक पेड़ हूँ,
एक पेड़ हूँ।