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मैं जहाँ जाता हूँ मेरे साथ जाती है ग़रीबी / डी. एम. मिश्र

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मैं जहाँ जाता हूँ मेरे साथ जाती है ग़रीबी
मेरे दामन से लिपटकर मुस्कराती है ग़रीबी।

भूख में भी, प्यास में भी गुनगुनाते,गीत गाते
दो टके पर चार पुरसा कूद जाती है ग़रीबी।

थाम ले इक बार दामन तो कहाँ फिर छोड़ती है
ख़ानदानी है, वफ़ादारी निभाती है ग़रीबी।

वो अँधेरी रात पूरे हौसले से कट गयी
एक बीड़ी, चिलम से भी हार जाती है ग़रीबी।

पेट भरने का ग़रीबी रास्ता सब जानती है
दाल कम पड़ती है तो पानी बढ़ाती है ग़रीबी।