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मैं पुकारूं तुम्हे / सतीश छींपा

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डहेलिया उदास खड़ा है
मुरझाने लगा है बुरूंश
शहतूत से पत्ते झड़ने लगे हैं।
गलियां ऊँघ सी रही है
सूखने लगे है गुलमोहर
ऐसे में आओ तुम मिलने
ताकि फिर से फूट जाए
गुलमोहर के कोंपले
नीम पर मींमझर महक उठे
पीपल के पत्तों से झर कर ओस
चूम ले धरती को
चहकने लगे चिडियाएँ
दरखतों की हरियाली
पसर जाए
शहर पर
मैं -
हौले से पुकारूं तुम्हें
गिर पड़े नीम से निमोळी।