भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं भी माँ हूँ / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:20, 26 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल }} {{KKCatKavita}} <poem> एक सपना ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक सपना
सूखे बीज की तरह
दबा रहा बरसो
मेरी कोख में
प्रेम-वर्षा में आकाश के
भीगकर कुछ पल
अंकुरित हुआ
बढ़ने लगा
अपनी छाती का रक्त पिलाकर
पाला उसे
बरसात में सूखा रखा
ग्रीष्म में नम
आज वह सबल, सक्षम वृक्ष है
पिता से हँसता-बतियाता है
दुनिया को देता है फल-फूल भरपूर
झुककर नहीं देखता कभी मेरी ओर
उसकी नजर में
मैं सूखी-बंजर जमीन हूँ
उसकी सफलता में कहीं नहीं हूँ
मैं भी जाने कैसी माँ हूँ !