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मोबाइल / निरंजन श्रोत्रिय

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मैं अभी शामला हिल्स में हूँ!’
उसने कहा मोबाइल पर नंबर देखकर
हालांकि था वह एमपी नगर में
एकदम विपरीत छोर पर
वह आसानी से झूठ बोल रहा था
इस चलताउ यंत्र के सहारे
उसे पकड़ना मुश्किल था उसके ठिकाने को तो असंभव!

मोबाइल बज रहा था लगातार
वह नंबर देखता और बजने देता मुँह बिचका कर
यहां तक कि आस-पास के लोग भी नहीं टोकते अब तो
कि भाई साहब! आपका मोबाइल बज रहा है
जैसे कि टोक देते थे एक समय
कि आपके स्कूटर की लाइट जल रही है!

कभी मिलने पर कह देगा कि--
दूसरे कमरे में था- सुनाई नहीं दिया
मीटिंग में था- वाइब्रेशन पर था
ट्राफिक में फंसा था- शोर में गुम गया

मोबाइल की घंटी बजती दस्तक की तरह हमारे दरवाज़े पर
मगर कॉलर आइडी पर चमकता नंबर कई बार
पार नहीं कर पाता हमारे स्वार्थ और मक्कारी की दीवार
और हो जाता तब्दील मिस्ड कॉल में।

और उनका तो कहना ही क्या
जो केवल मोबाइल में फीड नंबर ही अटैंड करते हैं
इस असीम आकाश में मचलते असंख्य स्पंदन
उनके सीमित और प्रायवेट वृत्त से टकराकर लौट जाते हैं।

बातचीत के लिये खरीदे गये समय को
वह पूरी चालाकी से खर्च करता है
कई बार- ‘सिग्नल नहीं मिल रहे’
 ‘बाद में बात करता हूँ’कह कर
संवाद की तनी डोर को अचानक बेरहमी से काट देता है।


कई बार एक-दो घंटी देकर
वह देता है उलाहना बेशर्मी से
परेशान हो गए तुम्हें कॉल कर-कर के’
रिक्शा-चालक और बढ़ई के पास भी मोबाइल देखकर
करता है वह अपने महँगे हैंड-सैट पर गर्व!

इस शातिराना समय में
मोबाइल पर आँख दबा कर
झूठ आजमाता व्यक्ति कितना काईंया लगता है!

--वे सो रहे हैं
--वे बाथरूम में हैं
--वे दूसरे फोन पर हैं
--वे घर पर नहीं हैं

मोबाइल हमें वह झूठ बोलना सिखाता है
जिसे दुनियादारी कहते हैं
कुढ़ता रहता यह सब देख घर के कोने में
सुस्त-सा पड़ा लैंडलाइन फोन
याद करता अपने संघर्ष भरे सफ़र को
जो ‘नंबर प्लीज़’ से शुरू होकर
डिजीटल डायलिंग तक पहुंचा था
जिसे सुनना नहीं चाहती आज की
स्मार्ट और मोबाइल पीढ़ी।

करो एसएमएस
कि तुम्हें चुनना है देश का गायक
करो एसएमएस- हाँ या ना
कि तुम्हें भाग लेना है एक गंभीर बहस में
करो एसएमएस
कि तुम्हें होना है रातों-रात करोड़पति
कि तुम्हें धकेलना है ताजमहल को सात आश्चर्यों में!

लो बज रही मोबाइल की घण्टी
स्क्रीन पर देखो नंबर
और तय करो तुरत-फुरत झूठ-सच का अनुपात!