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मोर छत्तीसगढ़ / ध्रुव कुमार वर्मा

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मोर छत्तीसगढ़ के आगी,
तोर बुझागे गोरसी।
दोगला पाइन खोरसी,
कउड़ा होगे ठण्डा।
राज करत हे पण्डा,
तोर ढिल्ला होगे पागी॥1॥

मोर छत्तीसगढ़ के पानी,
परदेशिया के गारी।
बनगे-कान के बारी,
तोला देखावय ठेंगवा।
कबले रइबे रेंदवा,
ते राख ले अपन बानी॥2॥

मोर छत्तीसगढ़ के माटी,
लहू अपन अउटाए।
अन के दाना पाए,
गरकट्टा मन आथे।
धुर्रा मोल नपाथे,
ठेंगवा ल कब ले चाटी॥3॥

मोर छत्तीसगढ़ के लहू,
ते कइसे निचट जुड़ाए।
बिन खाए पिए बुढ़ाए,
दुशासन ललकारथ
तोला ताना मारय
ओ लूटय बेटी-बहू॥4॥

मोर छत्तीसगढ़ के बेटा
तुहरेंच मन के भाई
बनगे आज कसाई
अपने अपन बांटय
गुददे गुददा ला चांटय
तोला देवय ढेठा॥5॥

मोर छत्तीसगढ़ के बासी
तोर दाना होगे मोती
ते जाथस कोती कोती
कुकुर कऊवा खाथे
लइका ल बिजराथे।
तोर करथे अड़बड़ हासी॥6॥