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मौसम के कागज़ पर / धनंजय सिंह

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मौसम के कागज़ पर आज लिखा था सूरज
पर काले मेघ और बारिश ने घेर लिया

सुबह-दोपहर-संध्या, सबने यह देखा पर
जाने क्या बात हुई, सबने मुँह फेर लिया

तुम ही बतलाओ अब, किससे-क्या बात करें
कैसे भी काटें दिन, कैसे भी रात करें

कभी-कभी उत्सव भी, गाते हैं शोकगीत
जाने किन प्रेतों की छाया मंडराती है

आते तो ऐसे भी अवसर हैं जीवन में
हँसने की कोशिश में चीख़ निकल जाती है

जीवन की अपनी कुछ अलग ही पहेली है
जलते मरुथल में जल-स्रोत निकल आते हैं

सिंह-व्याघ्र-चीतों से घिरे हुए जंगल में
वन-वासी सामूहिक प्रेम-गीत गाते हैं !