Last modified on 29 जनवरी 2015, at 13:25

म्हारै पांती रा सुपना: अेक / राजू सारसर ‘राज’

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:25, 29 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

म्हानैं
बगत नीं मिल्यौ
पाच्छौ बावडनैं रो
आगै बधणैं री
आजादी ई खुसगी
कुण धरग्यौ
अै दो पाट
थारै हठ
म्हारी हूंस रा
जिणां बिचाळै किचरीज’र
लोई-झ्याण होय’र
मरणासण
पड्या बाट न्हाळै
छेहळी हेली री
म्हारै पांती सुपना
म्हारै पण बोलणैं माथै
लाग्यौडी है अणचावी पाबंदी।