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यथास्थान / कीर्ति चौधरी

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नहीं,वहीं कार्निस पर

फूलों को रहने दो।

दर्पण में रंगों की छवि को

उभरने दो।


दर्द :उसे यहीं

मेरे मन में सुलगने दो।

प्यास : और कहाँ

इन्हीं आँखों में जगने दो।

बिखरी-अधूरी अभिव्यक्तियाँ

समेटो,लाओ सबको छिपा दूँ

कोई आ जाए!

छि:,इतना अस्तव्यस्त

सबको दिखा दूँ!


पर्दे की डोर ज़रा खीचों

वह उजली रुपहली किरन

यहाँ आए

कमरे का दुर्वह अंधियारा तो भागे

फिर चाहे इन प्राणों में

जाए समाए


उसे वहीं रहने दो।

कमरे में अपने

तरतीब मुझे प्यारी है।

चीजें हों यथास्थान

यह तो लाचारी है।