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यमदूत / उदयन वाजपेयी

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पिता को जितना बीत गया उसके सामने जितना बीतने वाला है, इतना छोटा लगता कि उन्हें मृत्यु के पहले का अपना जीवन दो हाथ लम्बी ज़मीन मालूम देता जिसे वे एक बार में कूद कर पार सकते थे। वे इस लम्बी कूद के लिए अपना शहर छोड़ना नहीं चाहते थे। नाना के ऐसा चाहने पर पिता माँ की ओर देख मुस्करा देते। माँ गाय के सामने भूसा भरा बछड़ा रख देती। गाय के थनों में दूध और आँखों में आँसू उतर आते। मरे हुए चमड़े पर उसे जीभ फेरते देख माँ किसी चमत्कार की कामना करती।

नानी ज़िन्दगी को पूरा जी चुकने के बाद अपनी ही प्रेतछाया की तरह घर के जिस बरामदे में सरकती रहती उसी के कोने में पगड़ी पर सिर धरे एक बूढ़ा यमदूत सोता रहता।